संसार का संकट कैसे हटेगा 2021 ( Gita Sar)
संसार के संकट को टालने के लिए स्वयं प्रभु तत्वदर्शी संत बन कर आते हैं,
जिसको ज्ञान के द्वारा मानव समाज भक्ति ग्रहण कर अपने प्राणों की रक्षा करता है,
श्रीमद्भागवत गीता चार वेद का सारांश है,
श्रीमद्भागवत अध्याय ३ का श्लोक
यदा, यदा, हि, धर्म, ग्लानिः, स्वाति, भारत, अभ्युत्थानम्, अधर्मस्य, तदा, अत्मानम्, शजामि, अहम्।।।। (भारत) हे भारत! (यदा, यदा) जब-जब (धर्मों) धर्मकी (ग्लानिः) हानि और (अधर्मस्य) अधर्मकी (अभ्युत्थानम्) वृद्धि (भवति) होती है (तदा) तब-तब (हि) ही (अहम्) मैं (आत्मानम्) अपना अंश अवतार (सजामी) रचता हूँ अर्थात् उत्पन्न करता हूँ। (7)
श्रीमद भागवत गीता अध्याय 11 श्लोक संख्या 32 में 32 में कहते हैं कि मैं काल हूँ सब लोकों को खाने के लिए ही प्रकट हुआ हूँ,
इसके लिए
मैं अपने अवतार को बताता हूं, जिससे संसार में शांति और धर्म की वृद्धि होती है।
नकली धर्म गुरु संत फकीर महात्मा से कितना लाभ मिलता है?
धर्म गुरु, संत, फकीर, मौलवी ,पदारी
सभी कितना लाभ देते हैं?
यह सब विधि पूर्वक जानने के लिए संत रामपाल जी महाराज की वीडियो सुनिए
ज्योति निरंजन काल ब्रह्म के द्वारा प्रेषित पृथ्वी पर जितने भी संत महापुरुष आए यह झूठी अज्ञानी धर्मगुरुओं थे,
क्योंकि
जिसको काल ब्रह्म ने अपने लोकों में पहले से बनाए रखा जीवों को,
यही जीवों को संत महात्मा फकीर बनाकर इस धरती पर आकर गलत साधना देते हैं,
इससे मानव समाज को लाभ नहीं मिलता है, अर्थात हानि होती है, यह धीरे-धीरे सतयुग त्रेता द्वापर कलयुग में होता रहता है।
इनके द्वारा गलत साधना मार्ग के बारे में बताया जाता है,
जब पृथ्वी पर संकट आया था तब तब यह धर्म धर्मगुरु रक्षा करते हैं लेकिन आज के धर्मगुरु झूठी पूजा में लीन रहते हैं व अन्य सभी को बताते रहते हैं।
(इसलिए काल प्रभु यह चाहता है कि इस मानव समाज को गलत साधना देकर भक्ति के अवरुद्ध कर दूं)
जब पृथ्वी पर संकट आया था तब है
पूर्ण तत्वदर्शी संत ही मार्ग को शत-शत बताया है सुने वीडियो में पूरी कहानी
नकली साधना भक्ति मार्ग पकड़कर के जो मानव समाज गलत साधना करता है उससे मोक्ष प्राप्ति नहीं होती है ना ही उससे रोग कटता है ना उसे सुख मिलता है।
अर्जुन तुम
तत्वदर्शी संत की शरण में जाकर ज्ञान ग्रहण करो अध्याय 4 श्लोक 34 में आप प्रमाण से देख सकते हैं
श्रीमद्ग्रवद्गीता में शास्त्र अनुकूल भक्ति करने के लिए बताया गया है नीचे श्लोक में देखें
यज्ञार्थी, कर्मण:, अन्यत्र, लोकः, अयम्, कर्मबन्धनः, तर्थम्, कर्म, कांतेय, मुक्तसंगः, संपुट ।।
(यज्ञार्थी) यम अर्थात् धार्मिक अनुष्ठान के निमित किए जाने (कर्मण)) शास्त्रा विधि के अनुसार कर्मों का अतिरिक्त (अन्य) शास्त्रा विधि त्याग कर दूसरे कर्मों में लगा हुआ ही (अयम्) इस (लोकः) संसार में (कर्म प्रबंधधनः) कर्मों से बँधता है अर्थात चौरासी लाख योनियों में यातनाऐं धीय करता है। इसलिए (कौन्तेय) हे अर्जुन! तू (मुक्तसंगः) आसक्ति से रहित होकर (तर्थम्) उस शास्त्रानुकुल यज्ञ के निमित ही भलीभाँति (कर्म) भक्ति के शास्त्रा विधि के अनुसार करने योग्य कर्म अर्थात् कर्मण्य (संपुट) संसारस्म कर्म करता हुआ जान इति।।
नोट :-
अगर आपको संत रामपाल जी महाराज का बताया हो ज्ञान सत्य लगता है फिर आप संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के लिए नीचे दी गई लिंक से जरूर कनेक्ट करें और संत रामपाल जी महाराज के नियम को फॉलो करें और नाम भक्ति लेकर उस एक परमात्मा की पूजा करें और उससे मोक्ष और शांति प्राप्त करें।
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