" देवी दुर्गा का चरित्र पढें "

 " श्री जगदंबिकायै नमः"

" श्रीमद् देवी भागवत" 

"तीसरा स्कंध अध्याय"

 राजा परीक्षित ने श्री व्यास जी से ब्रह्मांड की रचना के विषय में पूंछा।  श्री व्यास जी ने कहा कि राजन मैं यही सवाल नारद जी से पूछा गया था, वह कथा आपसे संपर्क करते हैं, मैंने (यानी व्यास जी ने) श्री नारद जी से पूछा कि एक ब्रह्मांड के रचयिता कौन है?

कोई ब्रह्मा जी को, कोई विष्णु जी को, किसी शंकर जी को सृष्टि का रचयिता मानता है, बहुत से आचार्य भवानी (दूर्गा) को सभी मनोरथ पूर्ण करने वाली सम्प्लाते हैं,

 महामाया महाशक्ति और परम वे आदि पुरुष के साथ रहकर कार्य क्वेरी  करने वाली प्रकृति है,   

 ब्रह्मा के साथ उसका अवैध संबंध है (पृष्ठ 114)

(नोट - यह ब्रह्म काल है जो गीता अध्याय ११ श्लोक संख्या ३२ में बताया गया है)

 नारद जी ने कहा - व्यास जी प्राचीन समय की बात है, यही संदेश मेरे दिल में भी उत्पन्न हो गया था, तब तक मैं अपने पिता अमित तेजस्वी ब्रह्मा जी के स्थान पर गया था, इस समय जिस विषय में आप मुझसे पूछ रहे हों उसी विषय में। । मैंने पूछा।

मैंने कहा - पिताजी यह पूरा ब्रह्मांड कहां से उत्पन्न हुआ है?  इसकी रचना आप ने की?  या श्री विष्णु जी ने या शंकर जी ने कहा: शत-शत बताए हैं?

 ब्रह्मा जी ने कहा - (पृष्ठ 115 से 120 और 123,125,128,129)

बेटा मैं इस सवाल का क्या उत्तर दूं?  यह सवाल बड़ा ही जटिल है पूर्व काल में सर्वत्र जल ही जल था।

 तब तक मेरी उत्पत्ति कमल के फूल से हुई।  मैं कमल की कणिका पर बैठकर विचार करने लगा- इस अगाध जल में मैं कैसे उत्पन्न हो गया?  कौन मेरा साथी है?

 कमल का डंठल पकड़कर नीचे उतरा, वहाँ मुझे शेष धारी भगवान विष्णु के दर्शन हुए, वे योग निद्रा में सोए हुए थे इसलिए में भगवती योगनिद्रा याद आ गई।  मैं उनका स्तुति की तब वे कल्याणकारी भगवती श्री विष्णु के शरीर से निकलकर अचिंत रूप धारण करके आकाश में विराजमान हो गए, दिव्यनास की छवि बढ़ा रहे थे।  जब योग निंद्रा भगवान विष्णु के शरीर से अलग हुआ, इसके बाद भगवान विष्णु उठ कर बैठ गए, अब मैं और भगवान विष्णु के पास थे,

वही रुद्र भी प्रकट हो गए।

 हम तीनों को देवी ने कहा- ब्रह्मा विष्णु और महेश्वर, आप भली-भांति होकर अपने कार्य में संलग्न हो जाओ।

 निर्माण, स्थित, संगर - यह आपके कार्य हैं।

 इतने में एक सुंदर विमान आकाश से आया।  तब उन देवी ने हमें आज्ञा दी भगवान निर्भीक होकर इच्छा पूर्वक इस विमान में प्रवेश हो जाओ ब्रह्मा विष्णु और रुद्र आज मैं तुम्हें एक अद्भुत दृश्य दिखाती हूं।

हम तीनों देवताओं को उस पर बैठे देखकर देवी ने अपने सामर्थ्य से विमान को आकाश में उड़ा दिया।

इसलिए में हमारा विमान तेजी से जा रहा है पडा और वह दिव्य धमाललोक में जा रहा है

वहाँ एक दूसरे ब्रह्मा विराजमान थे, उन्हें देखकर भगवान शंकर और विष्णु को आश्चर्य हुआ।

भगवान शंकर और विष्णु ने मुझसे पूछा कि कलानन यह अविनाशी ब्रह्मा कौन है?

 मैंने उत्तर दिया - मुझे कुछ नहीं पता

 सृष्टि के करता है यह कौन है? मैं कौन हूं? और हमारा उद्देश्य क्या है- इस भ्रम ने मेरा मन चक्कर काट रहा है।

 इतने में मन के समान तीव्रगामी में वह विमान तुरंत वहाँ से चल पड़ा और कैलाश के सुरम्य शिखर पर जा पहुँचे, वहाँ विमान के पहुँचते ही एक भव्य से त्रिनेत्र धारी भगवान शंकर निकले।

  वे नंदी वृषभ पर बैठे थे।

पल भर के बाद वह  विमान राशि से भी पवन के समान तेज चल रहा था।  जिसके बाद बैकुंठ लोक में प्रवेश जहां भगवती लक्ष्मी का विलास भवन था।

 पुत्र नारद - वहाँ मैंने जो संपत्ति देखी उसका वर्णन करना मेरे लिए असंभव है।

 उस उत्तम पुरी को देखकर विष्णु का मन आश्चर्य के समुद्र में गोता खाने लगा।

 वहाँ कमल लोचन श्रीहरि निकले।  उनकी चार भुजाएँ थीं। 

 इतने में ही हवा से बातें होती हैं कि वह तुरंत उड़ गई।

आगे अमृत के समान मीठे जल वाला समुद्र मिला वही एक मनोहर द्वीप था उसी दीप में एक मंगलमय मनोहर पलंग बिछा था उस उत्तम पलंग पर एक दिव्य रमणी बैठी थी हम तुमस कहने में लगे हुए यह सुंदरी कौन है?  और इसका क्या नाम है?  हम इसके विषय में बिल्कुल अनभिज्ञ थे।

नारद!  यू संदेहजनक होकर हम लोग वहाँ रुके तब भगवान विष्णु ने उन चारुन्मनी भगवानवती को देखकर विवेक पूर्वक निश्चय कर लिया कि यह भगवती जगदंबिका है, तब उन्होंने कहा कि यह भगवती हम सभी की आदि कारण है।

 महाविद्या, महामाया इनका नाम "यह प्रकृति है" यह विश्वेश्वरी वेद गर्भाधान और शिवा कहलाती।))

 यह वही दिव्यांगना है, जिसके प्रलयार्णव में मेरे  दर्शन हुए थे उस समय में बालक रूप था मुझे पलने पर।) 

 वटवृक्ष के पत्र पर एक स्वरित सैया बिछी थी।

 उस पर लेट कर मैं पैर के शिशु को अपने कमल की तरह मुंह में लेकर चूस रहा था, यानी खेल रहा था।

 देवी गा गा कर मुझे सुलाती थी।

ये ही देवी है इसमें कोई संदेह की बात नहीं है जिससे आप मुझे देख रहे हैं पहले की बात याद आ गई यह हम सब की जननी है।

 श्री विष्णु ने समय अनुसार उन भगवती भुवनेश्वरी की स्तुति आरंभ कर दी।

भगवान विष्णु बोले - प्रकृति देवी को नमस्कार है,

भगवती विधात्री को निरंतर नमस्कार है, आप शुद्ध स्वरूपा हो यह सारा संसार तुमसे उत्पन हो रहा है, मैं ब्रह्मा और शंकर, हम सभी आपकी कृपा से विद्यमान हैं, हमारा विवेक भाव (जन्म) और तीरभाव (मृत्यु) हुआ करता है केवल आप नित्य हो जाते हैं। जाते हैं। कर सकते हैं जगत जननी हो प्रकृति और सनातनी देवी हो।

भगवान शंकर बोले- देवी यदि महा भाग विष्णु तुमसे से प्रकट हुए हैं तो मैं उन के बाद उत्पन्न होने वाले ब्रह्मा भी बहुत छोटे परिवार वाले हुए।

 फिर मैं तमोगुण लीला करने वाला शंकर क्या आपकी संतान नहीं हुआ अर्थात मुझे भी उत्पन्न करने वाली आप ही हो इस संसार की सृष्टि स्थिति और संघार में आप और गुणात्मक समर्थ हैं उन्हें तीनों गुणों से उत्पन्न हम ब्रह्मा विष्णु और शंकर नियमानुसार कार्य में देखते हैं।  क्या मैं ब्रह्मा और शिव विमान पर चढ़कर जा रहे थे हमें रास्ते में नए-नए अवतार दिखाई पड़े।

 भवानी!  भला कहिए तो उन्हें किसने बनाया है?

  यही प्रमाण पढ़ने के लिए श्रीमद् देवी भागवत महापुराण सभाषिकम् समठितम्, श्री खेमराज   कृष्णदास मुंबई, इसमें संस्कृत हिंदी किया गया है, तीसरा स्कंद अध्याय 4 पृष्ठ 10 श्लोक 42

  ब्रह्मा जी कहते हैं - मैं भी महामाया जगदंबा के चरणों में गिर पड़ा था और मैंने माता-पिता से पूछा कि वेद कहते हैं "  एकमेवा द्वितीय  ब्रह्म है ! तो वह क्या आत्मा सुरूपा तुम हो?और कोई पुरुष नहीं है?"

देवी ने कहा - मैं और ब्रह्म एक ही हूँ में में और ये ब्रह्मा में कभी किंंचित मात्र भेद नहीं है।

अधिक जानकारी के लिए शास्त्रों से प्रमाणित पुस्तक जीने की राह, ज्ञान गंगा जो हिंदी और अंग्रेजी में लिखी गई है,

 पृष्ठ पुस्तक की पीडीएफ फाइल को जरूर पढ़ें

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