दिव्य धर्म यज्ञ = विशेष 2022 भारत के विभिन्न राज्यों में

Divya Dharma Yagya Diwas
" काशी में भोजन भंडारा कराना "
 भारत की निम्न स्थानों पर भंडारे का स्थान सूची नीचे दिया जा रहा है
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1:- विशाल भंडारा सतलोक आश्रम इंदौर (मध्य प्रदेश) 
2:- विशाल भंडारा सतलोक आश्रम धूरी (पंजाब) 
3:- विशाल भंडारा सतलोक आश्रम मुंडका ( दिल्ली ) 
4:- विशाल भंडारा सतलोक आश्रम भिवानी (हरियाणा) 
5:- विशाल भंडारा सतलोक आश्रम सोजत (राजस्थान) 
6:- विशाल भंडारा सतलोक आश्रम शामली (उतर प्रदेश) 
7:- विशाल भंडारा सतलोक आश्रम रोहतक (हरियाणा) 
8:- विशाल भंडारा सतलोक आश्रम कुरेक्षेत्रा (हरियाणा) 
9:- विशाल भंडारा सतलोक आश्रम खामानों (पंजाब) 

#विशाल_भंडारा_दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस

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शेख तकी सब मुसलमानों का पीर (गुरु) था,
 जो कबीर परमात्मा से पहले से ईर्ष्या करता था,
 सर्व ब्राह्मण मुसलमान काजी, मुल्ला मजलिस करके षड्यंत्र के तहत योजना बनाई की कबीर निर्धन व्यक्ति है,
इसके नाम से पत्र भेज दो कि कबीर जी काशी में बहुत बड़े सेठ हैं, उनका पूरा पता है कि कबीर पुत्र नूर अली अंसारी जूलाहा वाली कॉलोनी काशी शहर, कबीर जी 3 दिन का धर्म भोजन भंडारा करेंगे सर्व साधु संत आमंत्रित हैं,,
 प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने की वाले को एक दोहर ( बहुत कीमती कंबल उस समय का माना जाता था)
एक मोहर 10 ग्राम की सोने की गोलाकार मोहर दक्षिणा में देंगे,,
प्रतिदिन जो जितनी बार भोजन करेगा उतनी बार ही दोहर मोहर दान करेगा व मिलेगा,,
भोजन में लड्डू जिलेबी हलवा खीर दही बड़े माल पुरी रसगुल्ले आदि आदि सब मिष्ठान खाने को मिलेंगे,
( सूखा सीधा आटा चावल दाल के जो बिना पकाए हुए घी बुरा सभी दिया जाएगा ) निश्चित दिन से पहले वाली रात्रि को साधु संत भक्त एकत्रित होने लगे अगले दिन भंडारा ( लंगर ) प्रारंभ होना था,
परमेश्वर कबीर जी को संत रविदास जी ने बताया कि आपके नाम के पत्र लेकर लगभग 1800000 साधु-संत व भक्त काशी शहर में आए हैं व भंडारा खाने के लिए आमंत्रित हैं, कबीर जी अब तो अपने को काशी त्याग कर कहीं और जाना पड़ेगा,
 कबीर जी तो ( सब कुछ जानने वाले) जानी जान थे फिर भी अभिनय कर रहे थे,
कबीर जी बोले रविदास जी आ जाओ झोपडी के अंदर बैठ जा,
(क्योंकि कबीर परमेश्वर को लीला दिखानी थी अर्थात शक्ति प्रदर्शन)
दरवाजा बंद कर खिड़की बंद कर देते हैं हम बाहर निकलेंगे ही नहीं वह लोग अपने आप चले जाएंगे।
परमेश्वर कबीर जी अन्य वेश में अपनी राजधानी सतलोक में पहुंचे,
वहां से 900000 बैलों के ऊपर (गधों जैसी थैला बनाकर) पका पकाया भोजन सूख सामान चावल आटा बूरा दाल घी आदि,
भरकर पृथ्वी पर उतरे थे,
सेवा करने वाले लोग सतलोक से आए थे,
परमेश्वर कबीर जी ने स्वयं बंजारे का रूप बनाया,
और अपना नाम केशव बताया,
दिल्ली का सम्राट सिकंदर तथा उसका गुरु शेखपीर भी आया,
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काशी मे भोजन भंडारा चल रहा था,
प्रत्येक भोजन करने वाले व्यक्ति को दोहर अर्थात कंबल, मोहर अर्थात 10 ग्राम सोना दिया जा रहा था।
जिन लोगों की बेईमानी की नियत थी वह दिन में कई-कई बार सोना कंबल ले रहे थे,
कुछ सूखा सीधा चावल खांड घी दाल आटा भी ले रहे थे,
यह यह सब देखकर शेख तकी ने रोने जैसी शक्ल बना ली और जांच करने लगा , 
सिकंदर लोधी राजा के साथ उस टेंट में गया जिसमें केशव नाम से स्वयं कबीर जी वेश बदलकर बंजारे के रूप में बैठे थे।
(उस समय के व्यापारियों को बंजारा कहते थे, 509 वर्ष पहले की बातें हैं)
सिकंदर लोदी राजा ने पूछा केशव (कबीर प्रभु) से कि आप कौन हैं?
आपका क्या नाम है? आप कबीर जी से क्या संबंध रखते हैं?

 केशव रूप में बैठे कबीर परमात्मा ने कहा कि मेरा नाम केशव है,
मैं बंजारा हूं,
नीचे फोटो देखें बंजारे रूप में,
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कबीर जी मेरे पगड़ी बदल मित्र हैं, मेरे पास उनका पत्र
चिट्ठी गई थी,
एक छोटा सा भंडारा लंगर करना है, कुछ सामान लेते आइएगा, उनके आदेश का पालन करते हुए सेवक हाजिर है भंडारा चल रहा है शेख तकी तो कलेजा पकड़ कर जमीन पर बैठ गया जब यह सुना कि एक छोटा सा भंडारा करना है, जहां पर 1800000 व्यक्ति भोजन करने आए हैं प्रत्येक को दोहर तथा मोहर और आटा दाल चावल घी खांड की सूखा सीधा रूप में दिए जा रहे हैं, इसको छोटा सा भंडारा कह रहे हैं, परंतु ईर्ष्या बस अग्नि में जलता हुआ विश्राम गृह में चला गया जहां पर राजा ठहरा हुआ था, सिकंदर लोधी ने केशव से पूछा कबीर जी क्यों नहीं आए? केशव तो ने उत्तर दिया उनका गुलाम जो बैठा है उनको तकलीफ उठाने की क्या आवश्यकता? जब इच्छा होगी आ जाएंगे यह भंडारा तो 3 दिन चलना है।
सिकंदर लोधी हाथी पर बैठकर अंग रक्षकों के साथ कबीर जी की झोपड़ी पर गए, वहां से उनको तथा रविदास जी को साथ लेकर भंडारा स्थल पर आए सबसे कबीर सेठ का परिचय कराया तथा केशव रूप में स्वयं डबल रोल करके उपस्थित संत भक्तों को प्रश्न उत्तर करके सत्संग सुनाया जो 24 घंटे चल रहा था कई लाख संतो ने अपने गलत भक्ति त्याग कर कबीर जी से दीक्षा ली अपना कल्याण कराया, भंडारे के समापन के बाद जब बचा हुआ सब सामान तथा टेंट बैलों पर लादकर चलने लगे तब सिकंदर लोधी राजा तथा सेखतकी केशव तथा कबीर जी एक स्थान पर खड़े थे, सब बैल तथा साथ लाए सेवक जो बंजारों की वेशभूषा में थे गंगा पार करके चले गए, कुछ ही देर के बाद सिकंदर लोदी राजा ने केशव से कहा आप जाइए आपके बैल तथा साथी जा रहे हैं, जिस ओर बैल तथा बंजारे गए थे,
जिस और बैल तथा बंजारे गए थे राजा ने देखा उधर कोई नहीं था यह आश्चर्यचकित बात थी,
राजा ने कबीर जी से पूछा कि इधर बैल तथा बंजारे गए थे वह कहां हैं ? मुझे आश्चर्य हो रहा है, उसी समय देखते देखते केशव कबीर जी के शरीर में समा गए अकेले कबीर जी ही खड़े थे सब माजरा रहस्य समझकर सिकंदर लोदी राजा ने कहा कि कबीर जी यह सब लीला आपकी थी थी आप स्वयं परमात्मा हो ,
शेख तकी के तन मन में ईर्ष्या की आग लग गई थी,
शेखतकी कहने लगा कि ऐसे ऐसे भंडारे हम बहुत करते हैं, यह एक महोक्षा था,
महोक्षा ! उस अनुष्ठान को कहते हैं जो किसी गुरु के द्वारा किसी वृद्ध की गति करने के लिए सौंपा जाता है उसके लिए सब घटिया सामान लगाया जाता है जग जोनार करना उस अनुष्ठान को कहते हैं जो विशेष खुशी के अवसर पर किया जाता है जिसमें अनुष्ठान करने वाला दिल खोलकर धन खर्च करता है 
संत गरीबदस जी ने कहा है कि
गरीब, कोई कहे जग जौनार करी है, कोई कहे महोक्षा।
बडे बड़ाई किया करें, गाली काढे औछा।।
सारांश :- कबीर जी ने भक्तों को उदाहरण दिया है कि यदि आप मेरी तरह सच्चे मन से भक्ति करोगे तथा ईमानदारी से निर्वाह करोगे तो परमात्मा आपकी ऐसे सहायता करता है भक्त वास्तव में सेठ अर्थात धनवंता है, भक्तों के पास दोनों धन हैं संसार में जो चाहिए वह भी धन भक्तों के पास होता है तथा सत्य साधना रूपी धन भी भक्तों के पास होता है।
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एक अन्य करिश्मा जो उस भंडारे में हुआ :-
वह ,जीमनवार लंगर 3 दिन चला, दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम 2 बार भोजन खाता था, कुछ तो तीन बार भोजन करते थे क्योंकि प्रत्येक भोजन के पश्चात दक्षिणा में एक मोहर और  दोहर दिया (कंबल तथा 10 ग्राम सोना) जाता था, इस लालच में बार-बार भोजन खाते थे 3 दिन तक 1800000 व्यक्ति शौच तथा पेशाब करके काशी की चारो ओर ढेर लगा देते, काशी को सड़ा देते, काशी निवासियों तथा उन 1800000 अतिथियों तथा 100000 सेवादार जो सतलोक से आए थे उस गंध का ढेर लग जाता सांस लेना दूभर हो जाता, परंतु ऐसा महसूस ही नहीं हुआ,
 सब दिन में दो तीन बार भोजन खा रहे थे परंतु शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे ना पेशाब कर रहे थे, इतना स्वादिष्ट भोजन था कि पेट भर भर कर खा रहे थे,
 पहले से दुगना भोजन खा रहे थे ,
हजम भी हो रहा था ,
किसी रोगी तथा वृद्ध को कोई परेशानी नहीं हो रही थी, उन सब को मध्य से चिंता हुई कि ना तो पेट भारी है व भूख भी ठीक लग रही है, कहीं रोगी ना हो जाएं ,
सतलोक से आए सेवकों को समस्या बताई तो उन्होंने कहा कि यह भोजन ऐसी जड़ी बूटियों को डालकर बनाया है जिससे यह शरीर में समा जायेगा,,
 हम तो यही भोजन अपने लंगर में बनाते हैं,
 यही खाते हैं, हम कभी शौच ( लैट्रिन) नहीं जाते ना पेशाब करते,
 आप निश्चिंत रहो हो, फिर भी विचार कर रहे थे कि खाना खाया है परंतु कुछ शरीर से तो मल निकलना चाहिए उनको लैट्रिन जाने का दबाव हुआ,
सब शहर से बाहर चल पड़े टट्टी (लैट्रिन ) के लिए एकांत स्थान खोज कर बैठे तो गुदा से वायु निकली पेट हल्का हो गया तथा वायु से सुगंध निकली,,
 जैसे केवड़े का पानी छिड़का हो,
 यह सब देख कर सबको सेवादारों की बात पर विश्वास हुआ तथा उनका भय समाप्त हुआ,
 परंतु फिर भी सबकी आंखों पर अज्ञान की पट्टी बंधी थी, परमेश्वर कबीर जी को परमेश्वर नहीं स्वीकार कर रहे थे।
[पुराण शास्त्रों में प्रकरण है कि अयोध्या के राजा ऋषभदेव जी राज त्याग कर जंगलों में साधना करते थे उनको भोजन स्वर्ग से आता था तथा उनके मल पाखाने से सुगंध निकलती थी, आसपास के क्षेत्र के व्यक्ति इसको देखकर आश्चर्यचकित होते थे,
 इसी तरह सतलोक का आहार करने से केवल सुगंध निकलती मल नहीं, स्वर्ग तो सतलोक की नकल है ]

प्रिय पाठक लोगों से निवेदन है कि वर्तमान में इस पृथ्वी पर पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज है, जो नाम दीक्षा देने के अधिकारी हैं और इनके द्वारा दिया गया सत्संग सभी को सुनना चाहिए नाम दीक्षा लेकर भक्ति करनी चाहिए,,
प्रिय पाठक के लोगों से निवेदन है कि संत रामपाल जी महाराज का सत्संग जरूर सुने और इस इस छोटी सी कथा को जरूर पढ़े,
"दिव्य धर्म यज्ञ ऐसे होता है" आज का युग शिक्षित समाज है और कोई भी व्यक्ति गरीब नहीं,
 सरकार सभी के लिए कुछ जरूर देती है, जब आप प्रभु की शरण में होंगे तभी आपको कुछ सहायता हो सकती है,
 जब आप मन तन से भक्ति सुमिरन करेंगे जैसे भक्त पहलाद भक्ति करता था और उसकी रक्षा हुई,
अन्य बहुत से प्रमाण मिलते हैं जो आपके क्षेत्र से हैं,
 आज वर्तमान में आपकी रक्षा भक्ति की शक्ति के द्वारा ही हो सकती है,
 अन्यथा काल ब्रह्म के दिए हुए नियमानुसार इस पृथ्वी का कोई भी प्राणी सुखी नहीं रह सकता,
वर्तमान में महामारी भुखमरी व अन्य प्रलय जो मनुष्य के लिए खतरा बनी हुई है जिसका कारण है भक्ति ना करना,,
सन 1513 में कबीर जी ने लीला करके यह बताया कि हम परमात्मा है और क्या कर सकते हैं ?इसलिए कि पृथ्वी के लोगों को यह न लगे कि क्या कोई शक्ति ऐसी है जो 1800000 लोगों को भोजन करा सकती है, आज वर्तमान में शास्त्रों के द्वारा प्रमाणित हो गया,,
संसार में महापुरुषों के द्वारा ऐसा कई जगह देखा गया,
लेकिन काशी भारत शहर एक ऐसा था जहां पर 1800000 लोग लोगों ने 3 दिन तक भंडारा किया भोजन किया और सोना- कंबल भोजन प्राप्त करने के बाद भी लिया,,
विश्व में संत रामपाल जी महाराज का कहीं पर सत्संग चल रहा है तो आप जरूर पहुंचे और अपने घर पर बैठकर टेलीविजन मोबाइल पर सत्संग सुने और अपने परिवार को भक्तिमार्ग लगाकर प्रभु को प्राप्त करें अपने निजी सतलोक सब लोग चलेंगे,
(सतलोक में गई हुई आत्माएं अमर है वहां पर कोई प्रकार का अभाव नहीं सर्व सुख सुविधा फ्री है)
 अधिक जानकारी प्राप्त करें पुस्तक जीने की राह पढ़कर यह पुस्तक हिंदी इंग्लिश व अन्य भाषाओं में उपलब्ध है,,


"आशा करते हैं कि हमारी पोस्ट है आपको अच्छी
 लगी होगी इसलिए पढ़ने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद"
🌼🌼🌼🌼🌼🌼
Sant Rampal ji Maharaj



Comments

  1. 🥥केशो आया है बनजारा, काशी ल्याया माल अपारा।।
    नौलख बोडी भरी विश्म्भर, दिया कबीर भण्डारा।
    509 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी 18 लाख लोगों के लिए भोजन भंडारा सतलोक से लाये तथा प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर और एक मोहर दी। इसी को "दिव्य धर्म यज्ञ दिवस" के रूप में मनाया जा रहा है।

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  2. आज वही कबीर परमेश्वर संत रामपाल जी महाराज के रूप में अवतरित है जो फिर से तीन दिवसीय भंडारा कर रहे हैं। पूरे विश्व को आमंत्रित कर रहे हैं। सभी आकर भंडारे का लाभ उठाएं और पुण्य के भागी बने।

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कृपया कमेंट बॉक्स में लिंक ना डालें,

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