" प्रभु कबीर की भक्त थी"
"मीराबाई का जन्म 1498 मेड़ता में (कुड़की) दुदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के हुआ, बचपन से मीरा को भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में रूचि थी, मीरा का विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ, उदयपुर के राजा महाराज भोजराज इनके पति थे, जो मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे"
मीराबाई व संत रविदास के द्वारा दी गई भक्ति की सत्य कहानी पढ़िए"
मीराबाई जिस श्री कृष्ण के मंदिर में पूजा करने जाती थी उसके मार्ग में छोटा सा बगीचा था उसमें कुछ घनी छाया वाले वृक्ष थे, उस बगीचे में परमेश्वर कबीर जी तथा संत रविदास जी सत्संग कर रहे थे, सुबह के लगभग 10:00 बजे का समय था, मीराबाई जी ने देखा कि यहां परमात्मा की चर्चा या कथा चल रही है कुछ देर सुनकर चलते हैं,
परमेश्वर कबीर जी ने सत्संग में संक्षिप्त सृष्टि रचना का ज्ञान सुनाया कहा कि श्री कृष्ण जी यानी श्री विष्णु जी से ऊपर अन्य सर्वशक्तिमान परमात्मा है,मनुष्य का जन्म मरण समाप्त नहीं हुआ तो भक्ति करना ना करना समान है ,जन्म मरण तो श्री कृष्ण जी का भी समाप्त नहीं है, उसके पुजारियों का कैसे होगा?
जैसे हिंदू संतजन कहते हैं कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण अर्थात विष्णु जी ने अर्जुन को बताया, गीता ज्ञान दाता गीता अध्याय 2 श्लोक 12 अध्याय 4 श्लोक 5 अध्याय 10 शब्दों में स्पष्ट कर रहा है कि अर्जुन तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं तू नहीं जानता मैं जानता हूं इससे सिद्ध है कि श्री कृष्ण जी का जन्म मरण समाप्त नहीं है, यह अविनाशी नहीं है इसलिए गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता बोलने वाले ने कहा है कि भारत उस परमेश्वर की शरण में जा,
उस परमेश्वर की कृपा से ही तो सनातन परमधाम को अर्थात परम शांति को प्राप्त होगा।
"दोस्तों हम अपने आर्टिकल के द्वारा कुछ संक्षिप्त में बता कर हम आपको प्रभु के मार्ग की तरफ ले चल रहे हैं"
"मीराबाई राजघराना ठाकुर के घर की रहने वाली राजस्थान के राजा भोजराज की पत्नी थींं"
दोस्तों मीराबाई भगवान श्री कृष्ण की पूजा किया करती थींं, मीराबाई प्रतिदिन मंदिर में भगवान कृष्ण की पूजा करने जाती थी, और एक दिन सतगुरु कबीर साहेब का सत्संग सुना कि" ब्रह्मा विष्णु महेश "का जन्म मृत्यु होता है और विष्णु अवतार कृष्ण है इनके शिष्यों का जन्म मृत्यु होता रहेगा।
मीराबाई ने भगवान श्रीकृष्ण को याद किया भगवान कृष्ण प्रकट हुए और उनसे साक्षात बात की, प्रभु हमने कबीर साहेब का सत्संग सुना है और उन्होंने कहा कि ब्रह्मा विष्णु महेश का जन्म और मृत्यु होता है "'देवी पुराण के तीसरे स्कंध में भी प्रमाण है"
दोस्तों मीराबाई सत्य भक्ति करना चाहती थी इसलिए भगवान श्रीकृष्ण से कई प्रश्न किए जिससे भगवान श्रीकृष्ण सच बताने के लिए अग्रसर हुए और बताया कि आप संत की शरण में जाओ और उनसे ज्ञान को सुनो, इसके बाद मीराबाई मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करना बंद कर दिया था।
मीराबाई के पति ना होने के कारण है मीरा का देवर " राणा मीराबाई की मां को समझाने के लिए बोला कि मीरा रात्रि में सत्संग जाती है और हमारा धर्म जाति को बेजती होती है, इसलिए उसको समझाओ।
मीराबाई और माता की वार्ता होती है जिसके लिए वाणी नीचे दी गई है,
आप जरूर पढ़े। 👇👇 🎤🙎
माता :- सत्संग में जाना मीरांं छोड़ दे ए, आए म्हारी लोग करें तकरार।
मीरा :- सतसंग में जाना मेरा न छूटै री, चाहे जलकै मरो संसार।। टेक।।
माता:- थारे सतसंग के राह में ऐ, आहें वहां पर रहते काले काले नाग,
कोय कोय नाग तनै डस लेवै।
मीरा:- जब गुरू म्हारे मेहर करैं री, आरी वै तो सर्प गंडेवे बन जावैं।।1।।
माता:- थारे सतसंग के राह में ऐ, आहे वहां पै रहते हैं बबरी शेर,
कोय-कोय शेर तनै खा लेवे।
मीरा :- जब गुरूआं की मेहर फिरै री, आरी व तो शेरां के गीदड़ बन जावैं।। 2।।
माता :- थारे सतसंग के बीच में ऐ, आहे वहां पै रहते हैं साधु संत, कोय-कोय संत तनै ले रमै ऐ।
मीरा:- तेरे ही मन मैं माता पाप है री, संत मेरे मां बाप हैं री, आरी ये तो कर देंगें बेड़ा पार।।3।।
माता:- वो तो जात चमार है ए, इसमैं हमारी हार है ए।
मीरा :- तेरे री लेखै माता चमार है री, मेरा सिरजनहार है री। आरी वै तो मीरां के गुरू रविदास।।4।।
समस्त विवरण जीने की राह पुस्तक में इसको डाउनलोड करके जरूर पढ़ें 👇👇
https://www.jagatgururampalji.org/jeene-ki-rah.pdf
मीराबाई और माता की वार्ता होती है जिसके लिए वाणी नीचे दी गई है,
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माता :- सत्संग में जाना मीरांं छोड़ दे ए, आए म्हारी लोग करें तकरार।
मीरा :- सतसंग में जाना मेरा न छूटै री, चाहे जलकै मरो संसार।। टेक।।
माता:- थारे सतसंग के राह में ऐ, आहें वहां पर रहते काले काले नाग,
कोय कोय नाग तनै डस लेवै।
मीरा:- जब गुरू म्हारे मेहर करैं री, आरी वै तो सर्प गंडेवे बन जावैं।।1।।
माता:- थारे सतसंग के राह में ऐ, आहे वहां पै रहते हैं बबरी शेर,
कोय-कोय शेर तनै खा लेवे।
मीरा :- जब गुरूआं की मेहर फिरै री, आरी व तो शेरां के गीदड़ बन जावैं।। 2।।
माता :- थारे सतसंग के बीच में ऐ, आहे वहां पै रहते हैं साधु संत, कोय-कोय संत तनै ले रमै ऐ।
मीरा:- तेरे ही मन मैं माता पाप है री, संत मेरे मां बाप हैं री, आरी ये तो कर देंगें बेड़ा पार।।3।।
माता:- वो तो जात चमार है ए, इसमैं हमारी हार है ए।
मीरा :- तेरे री लेखै माता चमार है री, मेरा सिरजनहार है री। आरी वै तो मीरां के गुरू रविदास।।4।।
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