आत्महत्या एक महापाप
"आत्महत्या एक महापाप"
वर्तमान में लोग एक दूसरे पर आरोप लगाकर आत्महत्या करते हैं, आपसी में कलेश बढ़ता है, जिससे मां, बहन ,बेटी, भाई आत्महत्या कर लेते हैं। कुछ लोग जहर खा कर अपना शरीर गवा देते हैं, आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? आइए इस मानव जीवन पर प्रकाश डालते हैं।
सृष्टि के आरंभ से लोग अपने को सुखी देखना पसंद करते हैं लोगों को कोई काम न करना पड़े ,इसलिए वह इस धरती पर सुख ढूंढ रहे हैं लेकिन ऐसा इस धरती पर संभव नहीं है ।
वाणी कहती है :-
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तन भर सुखिया कोई न सुखिया जो देखा वह सुखिया हो।
उदय अस्त की बात करत है मन सबका किया विवेका हो।।
हम एक दूसरे पर यह झांकते हैं कि सामने का व्यक्ति धन से सुखी है उसके पास गाड़ी है बंगला है जमीन है सभी प्रकार से वह सुखी संपन्न नजर आता है ,लेकिन ने जब उस व्यक्ति से पूछो तो दूसरे को कहता है कि हम सुखी नहीं वह सुखी है इस तरह से मन बिजली की तरह शरीर अंदर विराजमान होकर विवेकशील से काम करता हुआ आगे चला जाता है,
और यही मन के द्वारा अत्यंत कष्ट हो जाता है ,जिसके अंतर्गत लोग अपने शरीर गवा देते हैं।
अधिक जानकारी के लिए संत रामपाल जी महाराज की लिखित पुस्तक ज्ञान गंगा, जीने की राह सभी भाषाओं में उपलब्ध है आप कृपया सभी जरूर पढ़ें इसकी पीडीएफ फाइल नीचे दे रहे हैं।
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