जगन्नाथ मंदिर पर ब्लाग जरूर पढें
समुद्र तट पर उड़ीसा प्रांत शहर में लगभग 650 वर्ष पूर्व,
इंद्र दमन नाम का एक राजा था, एक रात्रि भगवान श्री कृष्ण ने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर बताया कि जगन्नाथ नाम से एक मंदिर बनवा लो
श्री कृष्ण जी ने यह भी कहा कि इस मंदिर में मूर्ति पूजा नहीं होनी है , सिर्फ एक संत होगा जो श्रीमद्भगवद्गीता अनुसार प्रचार करेगा,
यह बातें राजा इंद्र दमन से व श्री कृष्ण से होती हैंं,
सुबह उठते ही राजा इंद्र दमन ने अपनी पत्नी से सारी बात बताई,
पत्नी ने राजा से कहा कि शुभ कार्य में देरी नहीं करते भगवान कि नाम की संपत्ति भगवान के काम में लगा दो और मंदिर बनवा डालो।
समुद्र तट पर जहां मंदिर बनाने के लिए सपने में श्री कृष्ण ने दर्शन दिया था, सुबह उठते ही राजा उस तट के किनारे पहुंचता है, अगले दिन अपना कारीगर को लेकर अपना सारा कार्य शुरू कर के कुछ दिनों में मंदिर तैयार कर देता है,
मंदिर बनने के बाद समुद्री तूफान उठने के कारण पूरा मंदिर समुद्र के अंदर आकर टूट जाता है ,और वहां पर निशान भी नहीं बचता है, इस प्रकार राजा ने 5 बार मंदिर बनवाया था।
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अंत में राजा निराश होकर अपने भाग्य कर्म को कोसते हुए अपनी पत्नी से यह बात बताता है, कि मेरे कर्म भाग्य ठीक नहीं है ,
जिसके कारण यह मंदिर बार-बार टूट जाता है, और मेरा धन समाप्त हो चुका है ,अब तो कोष (रूपया) भी खाली हो चुका है।
एक दिन संत रूप में प्रभु आकर राजा को दर्शन देते हैं, प्रभु संत रूप में कहते हैं कि राजा एक बार मेरे आदेश से मंदिर बनवा दो अबकी बार समुद्र मंदिर नहीं तोड़ेगा,
राजा संत की बातों को नजरअंदाज करते हुए यह कहता है कि जब भगवान श्री कृष्ण ने (विष्णु अवतार) के आदेशानुसार मंदिर नहीं बच पाया तो आपके कहने से कैसे मंदिर बचेगा ?
यह कहता हुआ संत से बात करता है।
शाम हुई रात्रि हो गई फिर भगवान श्री कृष्ण ने सपने में दर्शन दिया और बताया कि वह जो संत आए थे वह प्रभु के पूर्ण संत हैं, एक बार आप फिर से मंदिर बनवा दो मंदिर नहीं टूटेगा।
परमेश्वर ने यह कहा कि मैं अमुक स्थान पर रहता हूं,
जब याद करना फिर तुम्हें मिलूंगा,
बाद में प्रभु राजा को मिले और कुछ बातें बताइ
इस समुद्र के किनारे जहां से तूफ़ान उठता है एक मेरा चबूतरा बनवा दो मैं उस चबूतरे पर बैठकर भक्ति करूंगा और तुम्हारे मंदिर की रक्षा करूंगा,
राजा ने सुबह अपनी पत्नी से यह बात बताई पत्नी ने कहा कि मंदिर आप बनवा दो राजा ने कहा कि हमारे पास धन नहीं है,
पत्नी ने अपने सारे गहने राजा को सौंप कर बेच दिया।
राजा ने भगवान श्री कृष्ण के दिशा निर्देशानुसार छठी बार मंदिर फिर से बनवाया और उस मंदिर में मूर्ति स्थापित नहीं की 1 दिन सिद्धि युक्त महात्मा नाथ परंपरा के वहां आते हैं और राजा से यह कहते हैं कि इस मंदिर में आपने मूर्ति स्थापना क्यों नहीं किया ! बिना मूर्ति के मंदिर सुना लगता है ! राजा ने श्रीकृष्ण के दिशा निर्देश अनुसार पूरी बात बताई नाथ जी ने यह कहा कि सपने की सारी बातें सही नहीं होती" इसलिए आप चंदन की लकड़ी की मूर्ति श्री कृष्ण की बनवा दो,
फिर और महत्माओं ने कहा कि श्रीकृष्ण के साथ बलराम की मूर्ति बनवा दो, दूसरे ने कहा बहन सुभद्रा की मूर्ति बना बनवा दो तीनों एक साथ रहेंगे तो अच्छा रहेगा,
जब राजा ने सारी बातें इनकार किया तो नाथ जी बिना जल ग्रहण किए हुए वहां से चल पड़े, राजा ने सोचा कहीं मुझे श्राप ना दे, ऐसा करते हैं, मंदिर में मूर्ति स्थापित करवा देते हैं, यह राजा ने विचार किया और कारीगरों को बुलाकर मंदिर में मूर्ति स्थापित शुरू करना चालू किया
मंदिर की मूर्ति बनाने के लिए 3 कारीगर आए तीनों ने मंदिर में मूर्ति बनाकर रखी तो सारी मूर्ति तीन बार टूट गई ,
राजा अपने भाग्य को कोसता है!
नाथ परंपरा के सिद्ध महात्मा व राजा की वार्तालाप,
राजा ने कहा कि मूर्ति बनाई जाती हैं, टूट जाती हैं,हमने सारा प्रयत्न कर लिया है।
इधर क्या होता है !
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इधर ज्योति निरंजन प्रभु के वचन अनुसार समय पूरा होने पर राजा के राज दरबार में प्रवेश करते हैं, और राजा विचार करता है कि कोई अच्छा अनुभवी कारीगर मिल जाता जिससे मूर्ति बन सके, यह विचार कर ही रहा था कबीर प्रभु 80 वर्ष कारीगर रूप में आरी ,कन्नी, हथौड़ी लेकर राजा के राज दरबार में प्रवेश हुए।
कारीगर रूप में प्रभु यह परिचय दे रहे थे कि वास्तव में यह कारीगर है, प्रभु ने कहा मेरी 80 साल की उम्र है 60 साल का अनुभव है, हमसे मूर्ति स्थापित करवा लो मूर्ति नहीं टूटेगी।
राजा ने प्रभु रूप कारीगर से की बातों का निर्णय लिया कारीगर रूप में प्रभु ने राजा से कहा कि हमें कमरा दे दो और हम बंद कमरे में मूर्ति स्थापित करेंगे मूर्ति बनने के बाद हम खोलेंगे अगर बीच में कोई कमरा न खोले , खुलेगा तो जितनी मूर्ति बनेगी उतनी ही मिल पाएगी।
लगभग 12 दिन मूर्ति बनाने का समय पूर्ण हुआ, इधर नाथ परंपरा के सिद्ध महत्मा राजा के पास पहुंचते हैं, और मूर्ति बनाने के विषय में जानकारी लेते हैं।
नाथ जी को राजा ने पिछली सारी बात बताई नाथ जी ने यह कहा कि वह कारीगर कौन है मुझे दिखाओ 12 दिन से कमरा बंद है,
कारीगर अन्न-जल भी नहीं ले रहा !
नाथ महात्मा ने कहा हमें मूर्तियां देखनी चाहिए कारीगर ने किस तरह से बनाई है यह बात कर के दरवाजे पर जाकर आवाज करता है,
धक्का मारकर दरवाजा तोड़ दिया तो क्या देखा
अंदर से खट खट की आवाज आ रही थी दरवाजा खुलते ही आवाज गायब हो गई,
कारीगर रूप में प्रभु मंदिर से अंतर्ध्यान हो गए,कमरे के अंदर 3 मूर्तियां बनी थी जिनके हाथ पैर नहीं थे।
नाथ जी ने कोई चारा ना देखा तो राजा से कहा मंदिर बन चुका है मूर्तियां स्थापित कर दो।
हो सकता प्रभु को यह मंजूर हो श्री कृष्ण स्वयं मूर्ति बना कर गए यह बात नाथ परंपरा की महात्मा ने कही क्योंकि वह पूर्ण परमात्मा से अपरिचित था और वह कल का भेजा हुआ सिद्ध महात्मा था।
मुख्य पांडे ने मूर्तियां स्थापित करके उस मंदिर का उद्घाटन कर दिया इस तरह से यह मंदिर बनकर तैयार हुआ आज भी इस मंदिर में छुआछूत नहीं होती है अधिक जानकारी के लिए पुस्तक कबीर परमेश्वर में प्रमाण दे सकते हैं और कबीर सागर में परमेश्वर ने अपनी वाणी में भी जिक्र किया है।
(परमेश्वर ने राम साहयं पांडा का पैर जलने से बचाया था इस मंदिर पर परमेश्वर ने इंद्र दमन राजा की पत्नी को भी शरण में लिया था व अन्य लाभ भी दिए थे,)
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ReplyDeleteVery nice blog
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